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(२०) होकर काम करना चाहिए ! यह जमाना अब परस्पर मिलकर काम करनेका है। शब्दोंके गोरख-धंदेमे ही फंसकर' कर्तव्य भ्रष्ट होते हुए अपना सर्वस्व खो बैठना कोई बुद्धिमत्ता नहीं है । प्रकृतिका एक २ पदार्थ हमें ऐक्यके विश्वव्यापक सिद्धान्तकी शिक्षा दे रहा है । ऐक्यमें कितना बल है ? इसके अनेक प्रत्यक्ष उदाहरण देखने में आते हैं । सूतके बारीक बारीक डोरे अपनी भिन्न २ दशामे रहे हुए जरासा धक्का लगने पर सहजमें ही टूट जाते हैं । परन्तु अब वे एक दूसरेके साथ मिल जाते हैं, तब उन्हें ऐक मदोन्मत्त हस्ती भी तोड़नेके लिए समर्थ नहीं हो सकता!
सजनो ! अपनी पाँचो अंगुलियाँ एक जैसी नहीं हैं और एकका काम दूसरी नहीं कर सकती। ऐसा होनेपर भी यदि कोई प्रश्न करे कि इनमें श्रेष्ठ कौनसी है ? तो इसका उत्तर देना कठिन है। क्योंकि अपने २ कार्यमें सभी श्रेष्ठ हैं । सभी अंगुलियाँ जब साथ मिलती हैं तभी कार्य होता है इसी तरह जब हम दूसरेको हलका न समझते हुए परस्पर मिलकर काम करनेमें प्रवृत होंगे तभी सफलताका मुँह देख सकेंगे! ( करतल ध्वनि) वास्तविक ऐक्य आत्मस्वरूपकी प्राप्तिमें है । जिस वक्त यथार्थ ज्ञानकी प्राप्ति मनुष्यको होती है, उसी समय सूर्यके प्रकाशसे अन्धकारकी तरह भेद भावका सदाके लिए नाश हो जाता है । यही तात्विक , विचार
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