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है । पुरातन मुनि कर्त्तव्यको ही फिरसे उत्तेजित करनेके लिके यह उद्योग है।
अच्छा ! अब यह सम्मेलन किस लिये हुआ है, वह मैं आपको बतलाता हूँ। ऐसे सम्मेलन करनेसे अपने मुनि दूर दूर देशोंसे आकर एक स्थानमें मिलते हैं इससे दर्शनका लाभ होता है; एक दूसरेकी पहिचान नहीं है वह भी होती है, और आपसमें प्रीतिभाव बढ़ता है। उससे जो धर्म संबंधी कार्य हों उनमें एक दूसरेकी मददका मिलना और अपने इस सम्मेलनको देख कर अन्य भी इस प्रकारसे धर्मोन्नतिके लिये सम्मेलन करना सीखें जिससे दिनपरदिन शासनकी उन्नति हो । इसके अलावा एक महत्वका कारण यह भी है कि, अपने साधु तो फिरते राम होते हैं । एक स्थानमें सिवाय चतुर्मासके रहते ही नहीं। शेषकाल बिहार में फिरते गुजरता है । चतुर्माप्समें सबका मिलना मुश्किल, भिन्न भिन्न स्थानों में चतुर्मास होनेसे परस्पर मिलनेका समय वर्षों तक भी हाथ नहीं आता। ऐसी हालतमें कोई मनुष्य अपने किसी स्वार्य की सिद्धिके लिये आपसमें कुसंप करानेका, एक दूसरेकी सच्ची झूठी बातोंसे एक दूसरेके कान भरकर यदि आपसमें विक्षेप डाले या डाला हो तो इस प्रकारके संमेलनसे जो अंदरकी कोई आँटी पड़ गई हो वह फौरन ही सत्य बातके प्रतीत होनेपर निकल जाती है। यह कोई थोड़े लाभका कारण नहीं है । और मोटेसे मोटा फायदा
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