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(५८) ओंका कर्त्तव्य उच्च तत्वोंका अधिक प्रचार कर अर्हन् परमात्मा श्रीमहावीर भगवानने जगतके उद्धार निमित्त जो रस्ता बताया है उसे जगतवाप्ती जीवोंको दिखानेका है; परंतु दुखके साथ कहना पड़ता है कि, उस तर्फ अपनी दृष्टि जैसी चाहिये वैसी नहीं रहनेके सबब तथा अंदर अंदरके अमुक मत भिन्न होनेके कारण हम तुम अर्थात् समग्र मुनिवर्ग उपरोक्त स्वकर्तव्यका पालन नहीं कर सके।
अपने पूज्य पूर्वर्षियोंने अपनी अगाध और अलौकिक शक्तिसे जो जो महान् कार्य किये थे उन्हीं महर्षियोंकी संतान कहलानेवाले हम तुम उनके जैसे काम करने तो दूर रहे, परंतु जो वे कर गये हैं उसे सँभालनेकी शक्ति भी हम तुममें नहीं रही । क्या यह बात लज्जास्सद नहीं है । जिस समय हजारों हिन्दु बलात्कार स्वधर्मसे भ्रष्ट हो रहे थे, संसारमें आदर्श रूप पवित्र हिन्दुओंके मंदिर तोड़े जा रहे थे, ऐसे घोर अत्याचारी राजाओंके राज्यमें भी अपने पूर्वाचार्योंने अपनी आत्मशक्ति
और अतुल विद्वत्तासे पवित्र जैनधर्मकी जयपताका सारे भारतवर्षमें उड़ाई थी। हम तुम तो प्रतापी ब्रिटिश शाहनशाह नामदार पंचम ज्याके शांतिप्रिय राज्यमें तथा विद्याविलासी श्रीमान् महाराजा सयाजीराव गायकवाड़के जैसे उत्तम राज्यों में भी धर्मोन्नति नहीं कर सकते यह देखकर मुझे बड़ा खेद होता है। अपने पूर्वाचार्योंकी अतुल विद्वत्ताका उदाहरण पाटण,
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