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(५९) खंभात, जैसलमेर, लींबडी आदिके ज्ञानभंडार सारे संसारको दे रहे हैं। हम तुममें वर्तमान समयके अनुसार नये ग्रंथ बनानेकी शक्ति तो दूर रही; परंतु जो अमूल्य ज्ञानका खजाना पूर्व महर्षि अपने लिये रख गये हैं उसे समझनेकी भी पूरी शक्ति नहीं यह कितने दुःखकी. बात है।
महाशयो । मैं पहले ही कह चुका हूँ कि समग्र साधु समुदायके एकत्र होनेकी बहुत जरूरत थी, क्योंकि, एकत्र होनेसे पृथक पृथक गच्छोंमें या एक ही गच्छके भिन्न भिन्न समुदायोंमें जो परस्पर मतभेद तथा भिन्न भिन्न विचारादि हैं, वे दूर हो सकते हैं। और आपसमें प्रीतिभाव उत्पन्न होता है। परंतु वर्तमान स्थितिका अवलोकन करनेसे मुझे मालूम हुआ कि, श्वेतांबर संप्रदायके समग्र साधुओंका एकत्र होनेका हाल कोई भी संयोग नहीं है । बिलकुल न होनेसे तो केवल अपने (श्री आत्मारामजी महाराजके ) समुदायके साधुओंका ही एक सम्मेलन हो तो बहुत अच्छा है । ऐसा मेरा विचार था ही कि इतनेमें मुनि श्रीवल्लभविजयनीकी तरफसे सूचना हुई और शासनदेवकी कृपासे वह मेरा मनोर्थ और मुनिश्री वल्लभविजयजीके श्लाघनीय उद्यमका फलरूप कार्य यह संमेलन नजर आ रहा है। - साधुसंमेलन होनेकी खबर सुनकर सब जैनसमाज खुश होगा और यही कहेगा कि यह विचार अत्युत्तम है । इसको
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