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(५३) महाशयो ! आज जो आपलोग यहाँपर एकत्रित हुए हैं इसका हेतु क्या है ? क्या यह नवीन ही शैली है या पहेले भी ऐसे सम्मेलन हुआ करते थे ? इत्यादि प्रश्नोंका मनुष्योंके हृदयमें उठना एक स्वाभाविक बात है। इस बातके विवेचन करनेसे पहले यह कहदेना अवश्य उचित होगा कि, यह परिषद केवल साधुओंकी ही है। इसमें अन्य किसीको सिवाय साधुके बोलनेका या दखल देनेका सर्वथा अधिकार नहीं, यह बात ध्यानमें रहे। __यह सभा किस लिये की गई है ? इसका उद्देश क्या है ? इस प्रश्नका उत्तर देनेसे पहले मुझे तीसरे प्रश्नपर विचार कर लेनेकी आवश्यकता है।
महानुभावो ! हमने यह कोई नवीन आडंबर खड़ा नहीं किया है । इसे सभा कहो, सम्मेलन कहो, इकडे होना कहो या वर्तमानकाल के अनुसार ( जमाने हालके मुताबिक ) कॉन्फरन्स कहो ! भतलब सबका एक ही है । ऐसी ऐसी सभायें या सम्मेलन प्रथम भी हुआ करते थे यह बात इतिहासोंसे बखूबी मालूम हो सकती है । हमारे पूर्वनोंने इस संमेलनसे क्या क्या फायदे उठाये हैं इस बातको भी हमें इतिहास अच्छी तरह बतला रहा है। कालचक्रके प्रभाव ( जमानेकी गर्दिश ) से बीचमें लुप्तप्रायः हुए हुए उन्नतिकर इस उत्तम मार्गको नवीन समझना एक भूल
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