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(१०) हुए कुत्तेकी तरह उसकी घृणित दशा प्रतिव्यक्तिके अनादरका विषय हो पड़ती है । (तालियाँ) साधुके और नियमोंके पालनमें दैवयोग से यदि त्रुटि भी हो जाय तो संतव्य है। परन्तु ब्रह्मचर्य व्रतके भंगका अधिकार साधुको किसी भी अवस्थामें नहीं है। प्राण भले ही कल जानेवाले हों तो आज जाएँ मगर ब्रह्मचर्य व्रतमें क्षति न आनी चाहिए। .
सभ्य श्रोतृ गण ! कामरूप महा तस्करसे आत्मरूप धनको शरीररूप दुर्गमें सुरक्षित रखनेके लिए ब्रह्मचर्य एक बड़ी मजबूत अर्गला है; इसलिए ब्रह्मचर्य की सुरक्षामें साधुको बहुत सावधान रहना चाहिए । साधुके अतिरिक्त ब्रह्मचर्य गृहस्थका भी अनूठा भूषण है । गृहस्थ यद्यपि सर्वथा ब्रह्मचर्य पालन करने में बाध्य है, तथापि उसे स्वस्त्री संतोष और परस्त्री त्याग व्रतमें तो अवश्य दृढ रहना चाहिए । मोक्षरूप उन्नत प्रासादमें सदाके लिए निवासका होना ब्रह्मचर्य रूप सोपान पर ही निर्भर है। कहाँ तक कहूँ यह ब्रह्मचर्य आंतरिक दिव्य ज्योति है ! जीवनमें प्राण है ! आत्मिक दिव्य संपत्तिका मूल स्थान है ! जिसने इसे खोया उसने सर्वस्व खोया ! ( हर्षनाद)।
साधुका पाँचवाँ नियम है परिग्रहत्याग। अर्थात किसी भी वस्तुमें ममत्वका न रखना । अगर साधु ही सांसारिक पदार्थोपर ममत्व रखने लग जाय तो साधु और गहस्थमें सिवा वेषके और कोई अधिकता नहीं। साधुको पैसा रखना स्त्री रखनी,
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