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साधुको इतना ध्यान हर वक्त रखना चाहिए कि, उसका प्रत्येक आचरण निष्पाप हो । गृहस्थोंके लिए साधुका एक भी व्यवहार भार भूत न होना चाहिए ! साधुको क्षुधा निवृत्तिके 'लिए अन्न लानेका अधिकार भी एक गृहस्थके घरसे नहीं ! उसे माधुकरी वृत्तिले निर्वाह करनेकी शास्त्रों में आज्ञा है । जिस तरह मधुकर-(भौंरा) अनेक पुष्पों पर बैठता हुआ वहाँसे थोड़ा थोड़ा रस लेकर अपना निर्वाह करता है, और पुष्पोंको किसी प्रकारकी क्षति भी नहीं पहुँचती । इसी तरह साधुको अनेक घरोंसे थोड़ी थोड़ी भिक्षा लेकर अपना निर्वाह करना चाहिए ! गृहस्थके घरसे साधुको उतनी ही भिक्षा लेनी चाहिए जितनीसे गृहस्थको फिर नई बनानेकी आवश्यकता न पड़े। जो लोग उक्त शास्त्रीय नियमका भंग करते हैं, वे लोग संसार में उपकार रूप होनेके बदले निस्सन्देह भार रूप हैं ! ___ चतुर्थ नियम साधुका ब्रह्मचर्य है। यह इतना व्यापक और आवश्यक है कि, इस पर ही समस्त विश्वकी धार्मिक स्थिति अवलंबित है । ब्रह्मचर्य संसारके समस्त रत्नों में से एक अमूल्य रत्न है। जिस साधुके पास यह रत्न मौजूद है, वह जौहरी है ! वह धनवान है ! वह राजा है ! वह महाराजा है ! वह मालामाल है ! कहाँ तक कहूँ ? उसके पास तमाम दुनियाकी दौलत है। जिस साधुने इस अमूल्य रत्रको क्षण मात्रके विषयसुखके बदलेमें बेच दिया है वह ठगा गया, इतना ही नहीं किन्तु सड़े
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