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________________ (४९) साधुको इतना ध्यान हर वक्त रखना चाहिए कि, उसका प्रत्येक आचरण निष्पाप हो । गृहस्थोंके लिए साधुका एक भी व्यवहार भार भूत न होना चाहिए ! साधुको क्षुधा निवृत्तिके 'लिए अन्न लानेका अधिकार भी एक गृहस्थके घरसे नहीं ! उसे माधुकरी वृत्तिले निर्वाह करनेकी शास्त्रों में आज्ञा है । जिस तरह मधुकर-(भौंरा) अनेक पुष्पों पर बैठता हुआ वहाँसे थोड़ा थोड़ा रस लेकर अपना निर्वाह करता है, और पुष्पोंको किसी प्रकारकी क्षति भी नहीं पहुँचती । इसी तरह साधुको अनेक घरोंसे थोड़ी थोड़ी भिक्षा लेकर अपना निर्वाह करना चाहिए ! गृहस्थके घरसे साधुको उतनी ही भिक्षा लेनी चाहिए जितनीसे गृहस्थको फिर नई बनानेकी आवश्यकता न पड़े। जो लोग उक्त शास्त्रीय नियमका भंग करते हैं, वे लोग संसार में उपकार रूप होनेके बदले निस्सन्देह भार रूप हैं ! ___ चतुर्थ नियम साधुका ब्रह्मचर्य है। यह इतना व्यापक और आवश्यक है कि, इस पर ही समस्त विश्वकी धार्मिक स्थिति अवलंबित है । ब्रह्मचर्य संसारके समस्त रत्नों में से एक अमूल्य रत्न है। जिस साधुके पास यह रत्न मौजूद है, वह जौहरी है ! वह धनवान है ! वह राजा है ! वह महाराजा है ! वह मालामाल है ! कहाँ तक कहूँ ? उसके पास तमाम दुनियाकी दौलत है। जिस साधुने इस अमूल्य रत्रको क्षण मात्रके विषयसुखके बदलेमें बेच दिया है वह ठगा गया, इतना ही नहीं किन्तु सड़े Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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