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(४७) हरएक तरहके जीवकी हिंसाकी मना ही करते हैं ! इससे सिद्ध होता है कि, उनके कथनानुसार ही ईश्वरको कुरबानी प्यारी नहीं! यदि उक्त कर्मसे ईश्वरको प्यार होता तो वह (खुदा ) अपने स्थान पर उसका निषेध न करता ।
गृहस्थो ! मांसाहार शास्त्रविरुद्ध है इतना ही नहीं किन्तु सृष्टिक्रमसे भी विरुद्ध ह । सृष्टिमें मनुष्योंकी अपेक्षा पशुओंमें प्राकृत नियमके पालनका वर्ताव स्पष्ट देखनेमें आता है
और वे उक्त नियमको पालन करते देखे भी जाते हैं। सिंह चाहे कितना ही क्षुधासे पीडित हो परंतु वह मांसके सिवा अन्य वस्तु ( घास वगैरह ) को कदापि न खायगा ! एवं गायको चाहे कितना ही कष्ट प्राप्त हो मगर वह मांसको कदापि नहीं खा सकती। मनुष्यके स्वाभाविक आहारका विचार करनेसे मालूम होता है कि, मनुष्य मांसाशी नहीं है । मांसाहारी और फलाहारी पशु समुदायके मध्यमें यदि मनुष्यको खड़ा किया जाय तो उसका सादृश्य फलाहारी पशुओंसे ही हो सकता है । जो नीव स्वाभाविक मांसाहारी हैं उनको रात्रिमें अधिक दिखाई पड़ता है, भागनेसे पसीना नहीं आता, उनके दान्त तीखे होते हैं और वे जीभसे लप लप करके पानी पीते हैं। मगर जिन पशुओंका स्वाभाविक आहार वनस्पति है उनका व्यवहार मांसाशी जीवोंकी अपेक्षा सर्वथा विपरीत देखा जाता है। अर्थात् वे रात्रिमें नहीं देख सकते, उन्ह अधिक चलनेसे पसीना आता है, दात उनके
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