________________
(२१) धर्मसे प्राप्त होता है । इस लिए धर्म में सबकी अभिरुचि भी न्यून अथवा अधिक देखने में आती है। परन्तु अपनी २ मान्यताके अनुसार उसमें बहुत भेद भाव देखनेमें आता है इसका कारण यही मालूम पड़ता है कि, वस्तुमें जो अपेक्षा रही हुई है, उसकी तरफ हम दृष्टि नहीं देते । यदि अपेक्षासे पदार्थका विचार किया जाय तो भेद भाव नाम मात्रके ही लिए रह जाता है।
गहस्थो ! यदि संसारके तमाम धर्मोको सर्वथा जुदा जुदा ही माना जाय, तब तो उसका कर्तव्य भी जुदा, उसमें कथन किया पुण्य पाप भी जुदा, उससे होनेवाली मुक्ति भी जुदी,
और अन्तमें ईश्वर भी जुदा २ ही मानना पड़ेगा । यद्यपि ऐसा माननेवाले नजर भी आ रहे हैं, मगर इसका कारण यही है कि लोग हठ और आग्रहसे अपने ककेको ही खरा मान रहे हैं । आन संसारमें हिंदु, मुसलमान और ईसाई ये तीन धर्म अधिक प्रसिद्ध हैं ! इनमें हिन्दु यदि " अहिंसा परमोधर्मः " का ढंढोरा पीटते हैं तो मुसलमान भाई इससे विपरीत ही अपनी मान्यता बतला रहे हैं ! और ईसाई महाशय. दोनोंसे ही जुदा राग आलाप रहे हैं । अब प्रश्न होता है कि हिन्दुओंका ईश्वर भूल रहा है ? या मुसलमान भाइयोंके खुदाने गलती खाई ? क्योंकि दोनों ही ईश्वरको मानते और उसकी आज्ञाके मुताबिक चलनेको धर्म मानते हैं।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org