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(२६) करना चाहिए । परस्परके मेलसे परस्पर अवलोकनका लाभ होता हैं । परस्पर अवलोकन ( एक दुसरेके सामने देखने ) से मूल्य बढ़ता है; बस मूल्य बढ़ना ही उन्नति है। आप लोग रोज देखते हैं कि, ६३ का अंक तब बनता है जब ६ और ३ इन दोनोंका मुख एक दूसरेके सामने होता है। परन्तु वही जब अपने मुखको एक दूसरेसे फिरा लेते हैं तब वे ६३ के ३६ बन जाते हैं। ( करतल ध्वनिः ) इसी तरह जिस समय भारतीय धार्मिक साम्प्रदायिक मनुष्योंमें परस्पर मेल था और वे एक दूसरेको प्रेमभरी दृष्टि से देखते थे उस वक्त भारतवर्षका गौरव ६३ के अंकके समान अधिक था, परन्तु जबसे इसमें विमुखताका प्रवेश हुआ तब से यह ६३ की कीमतके बदले ३१ की कीमतका रह गया।
ईश्वरको कर्ता और अकर्ता मानकर व्यर्थ कोलाहल मचानेके सिवा, यदि सत्य वस्तु क्या है ? इसकी खोज की जाय तो, लाभ बहुत हो । कितनेक लोगोंका कथन है कि, इस संसारको ईश्वरने ही बनाया है। वह जैसा चाहे वैसा करता है। यह कथन यदि ठीक ही मान लिया जावे तब तो किसीको राजा और किसीको रंक, किसीको अमीर और किसीको गरीब, एवं किसीको सुखी ओर किसीको दुःखी भी ईश्वरने ही बनाया होगा ! मगर सच्चिदानंद स्वरूप परमात्मको इस प्रकारके नाटकसे क्या लाभ होता होगा? यह भी एक विचार णीय है। क्योंकि, वह कृतकृत्य है । रागद्वेषसे रहित है।
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