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( ३९)
- सभ्य पुरुषो ! संसार में आज तक जितने धर्म प्रवर्तक मर्यादा शील अवतारी पुरुष हुए हैं, उनमेंसे आज एक भी विद्यमान नहीं है । अतः प्रत्यक्ष प्रमाणसे तो कुछ निर्णय हो नहीं सकता। इसलिए देवके सत्य स्वरूपके निर्णयके लिए अब मात्र दो वस्तुएँ हमारे पास हैं । जिनमें एक तो उनका जीवनचरित्र, और दूसरी उनकी प्रतिमा-मूर्ति । उनका जीवन किस प्रकारका था ? उनमें निर्दोषता अथवा सदोषता कहाँ तक थी ? इत्यादि बातें जीवनचरित्रोंसे अच्छी तरह समझमें आसकती हैं। तथा मूर्तिके देखनेसे मूर्तिवालेकी अवस्थाका चित्र भी बखूबी समझमें आ सकता है। जिसकी प्रतिमा-मूर्तिका देखाव शान्त है तो समझ लो कि उस मूर्तिवाला भी शान्त है। यदि मूर्तिकी आकृति क्रोध अथवा काममयी देखने में आती है, तो मूर्तिवाला भी क्रोध और कामसे मुक्त हुआ नहीं समझा जा सकता । इसलिए बुद्धिमानको समझ लेना चाहिए कि, उक्त मूर्तिवाला बनावटी देव है, उसमें देवके सच्चे लक्षण नहीं हैं । मुझे यहाँपर प्रसंगवश कुछ मूर्तिपूनाके सम्बन्धमें, कहना पड़ता है । क्योंकि, कितनेक मनुष्य अकारण ही मूर्तिपूजाके घोर विरोधी हो रहे हैं । इस विरोधका कारण क्या है ? यह मेरी समझसे बाहिर है । और मेरा उन लोगोंसे यह भी आग्रह नहीं कि, उक्त सिद्धान्तको वे
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