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( ३७ ) रागद्वेषसे मुक्त होनेकी आवश्यकता है तब तो सिद्ध हुआ कि, ईश्वर परमात्मा रागद्वेषसे सर्वथा मुक्त ही है । इसी लिए परमात्मा वीतराग कहा जाता है । ( सहर्षनाद )
सज्जनो ! शैव, वेष्णव, मुसलमान, और ख्रिस्ती आदि धार्मिक सजन अपने २ धर्म प्रवर्तक देव ईश्वरको यदि निर्दोष
और निष्कलंक मानते हैं, तथा यह मान्यता वस्तुतः ठीक है, तब तो कहना होगा कि, अपने सबमैं मात्र नामका ही फर्क है, न कि नामवालेका । एवं यह भी स्वीकार करना होगा कि, धर्मके नामसे ही हममें भिन्नता है, धर्म भिन्न २ नहीं । तथा ईश्वर वस्तु भी एक ही है उसमें भेद केवल निजकी कल्पना है । इसलिए वस्तु स्थितिकी शोध की जाय तो झगड़ा बहुत जल्दी निपट जाता है।
गृहस्थो ! मोक्षरूप अनंत सुखकी प्राप्तिके लिए बाह्य वेष ही नितान्त आवश्यक नहीं । लाल पीला अथवा अन्य किसी प्रकारका कपड़ा पहनने मात्रसे ही कल्याण हो जायगा ऐसी मान्यता केवल बालपन है । तात्विक सुख प्राप्तिका साधन मात्र अंतरंग शुद्धि है। अंतरंग शुद्धिसे ही समभाव की प्राप्ति होती है। समभाव ही मोक्ष प्राप्तिका निकट साधन है। बाह्य वेष तो केवल ऊपरके सव्यवहारकी रक्षाके लिए है । इसलिए बाह्य वेषमें भिन्नता रहने पर भी यदि आंतरिक
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