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चले ! इससे मालूम होता है कि, धर्मके वास्तविक रहस्यसे लोग अभी बहुत कम परिचित हैं ! अन्यथा इतना भेदभाव न हो !
सज्जनो ! मेरा माना हुआ धर्म अच्छा और तुम्हारा बुरा ! इस प्रकार वृथा ही कोलाहल मचानेवालों के सिवा, आत्मा कोई पदार्थ है, और वह अपने शुभ अशुभ कर्मके प्रभावसे देव मनुष्य और तिर्यच आदि अनेक प्रकारकी उच्च नीच गतियोंमें भ्रमण करता है, इस सिद्धान्तको भ्रमयुक्त और कपोल कल्पित बतानेवाले भी संसारमें बहुत मनुष्य हैं ! उन्हें यह सिद्धान्त बहुत ही उपहासास्पद मालूम होता है ! परन्तु एक निर्धन और दूसरा धनवान, एवं एकका जन्मसे ही प्रतिभाशाली होना, और दूसरेका अनेक प्रकारके प्रयत्न करनेपर भी आजन्म मूर्ख रहना, अवश्य कोई हेतु रखता है । क्योंकि कार्यका भेद कारण भेद पर ही अवलंबित है। इस लिए आप्त पुरुषोंने उक्त भेदका कारण जो कर्मको बतलाया है, वह बहुत ही ठीक मालूम पड़ता है। शास्त्रकारोंका कथन है कि, जीवात्माके साथ ऐसी किसी वस्तुका संबंध अवश्य है जिससे अपने में एकत्व होनेपर भी अंतर स्पष्ट प्रतीत होता है । कल्पना करो, एक ही पिताके दो पुत्र हैं। दोनों ही रूप और लावण्य में समान नजर आते हैं, पर जब उनके आंतरिक विचारों पर दृष्टिपात किया जावेगा तब भेद स्पष्ट ही ज्ञात हो जायगा। इस लिए आत्माके साथ संबंध रखनेवाला और परस्पर भिन्नताका नियामक पदार्थ कर्म है, यह
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