________________
कर्मचंद-यदि ऐसा पाठ न निकलेगा तो मैं ढूँढकपंथ छोड़ दूंगा । यदि निकल आयगा तो तुम क्या करोगे?
मुनिजीने बड़े हौसलेके साथ उत्तर दिया--" एक प्रश्न व्याकरण ही क्या यदि किसी भी जैनशास्त्रमें ऐसा मूलपाठ निकल आवे कि, जिनप्रतिमा पूजनेवाला मंदबुधिया ( मंद बुद्धिवाला ) होता है तो मैं ढूँढक पंथ स्वीकार कर लँगा।" - अच्छा किसी पढ़े हुए साधुसे पूछ कर आपके पास आऊँगा।" कह कर कर्मचंद चला गया । मगर सोहनलालजी, मयार.मजी आदिके होने पर भी आज तक उसने मुँह नहीं दिखाया । इसी तरह लाला देवीचंद दुग्गड़के पुत्र लाला सुरजनमलने भी प्रण किया था कि, यदि सोहनलालनी पंडितोंकी सभामें बैठकर तुम्हारे साथ चर्चा न करेंगे तो मैं ढूँढक पंथ छोड़ दूंगा सो प्रतिज्ञा पूरी करने में पूरे ही सूरमें निकले । चर्चाके लिए जो सभा बुलाई गई थी उसमें एकत्रित ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य सभी जैनेतर सज्जनोंने जो निर्णय चर्चाकी सभाका प्रकाशित किया था वह पूरा यहाँ उद्धृत किया जाता है। इसके नीचे करीब सत्तर उन व्यक्तियोंके नाम हैं जिन्होंने सभाकी तरफसे यह विज्ञापन प्रकाशित किया था।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org