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अफसोस की बात है कि जब पंडित नहीं जानते तो क्या गधे चराने वाले कुम्हार जानते हैं ? मालूम होता है कि ये सब अपठित एकत्र होरहे हैं और इसी कारण यह अपना स्थान छोड़कर पंडितों के सामने शास्त्रार्थ करना पसन्द नहीं करते, अस्तु इनकी इच्छा हमें क्या । सब लोग अपनी अपनी दुकानों पर आ बैठे, किन्तु जगत् आरसी सदृश है जैसा देखेगा वैसा कहेगा, बाजारमें धूम मच गई कि ढूंढिये साधु पुजेरे साधुओं के साथ किसी प्रकार भी बातचीत करने के योग्य नहीं, यह सुनकर ढूंढिये भावड़ो ने सोहनलाल जी के पास जाकर कहा कि इस बातमें बड़ी हीनता है किसी तरह से उत्तर दिया जाय तो श्रेय है । सोहनलालजी ने अपने सेवकों को ऐसा पत्थर पकड़ाया कि जो धरा जाय न उठाया जाय, अर्थात् यह बतलाया कि आत्मारामजी ने जैनतत्वादर्शके पृष्ठ ४०९ पर सूत्र महानिशीथ के तीसरे अध्ययनका पाठ लिखा है, सो यह पाठ महानिशीथ के तीसरे अध्ययनमें नहीं है । इस धोखे में आकर सुरजनमल भावडा ने पूज्य बक्षीराम को यह प्रतिज्ञा लिख दी कि यदि महानिशीथ के तीसरे अध्ययन में जैनतत्वादर्शका पूजा बाबत लिखा हुआ पाठ निकल जायेगा तो मैं ढूंढियापन्थ त्याग दूंगा । यह बात पूज्य बक्षीराम ने स्वीकार करली और प्रतिज्ञापत्र दोनों की ओर से लिखे गये, जिसपर तारीख १६ मार्च १९०४ बुधवार को दिनके एक बजे अनाजमंडी के बीच कटड़ा में सभा
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