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पुजेरों का कहना है, सो सत्य है । ढूंढ़िये जो अपवित्रता के गर्त में पड़े हुए हैं, सर्वथा असत्य हैं। सत्य है, जैसा पीवे पानी, वैसी बोले बानी । ढूंढ़िये मैला पानी पीते हैं और वैसे ही असत्य और अप्रमाणिक बोली बोलते हैं । शहर के लोगों की इच्छा थी की अगले दिन अर्थात् १७ मार्च १९०४ को फिर सभा लगा कर दोनों ही पक्षों के साधुओं की वार्तालाप सुनेंगे, परन्तु यह बात सुनते ही साधु सोहनलाल और मायाराम आदि १४ साधु प्रातः चल दिये, उनके दो दिन पीछे अर्थात् ता० १९ शनिवार को साधु हीरविजयजी व वल्लभविजयजी आदि बड़ी खुशीके साथ शहर नाभाकी तरफ़ प्रस्थित हुए । '
१ यह वर्णन आत्मानंद जैन पत्रिकाको सं० १९५६ की फाइल से लिया गया है ।
लेखक.
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