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आदर्श जीवन।
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श्रेष्ठ हो । दाख पके जब कव्वे का कंठ रुक जावे, वाकइ, आपको मूरि पद प्रात्प होने से जितनी उमंग की लहरोंसे हृदयकमल प्रफुल्लित हुवा उस से कई दरजे जियादा मेरी बद किसमती पर अफसोस और रंज हुवा, जिसको मैं लिख नहीं सकता। खैर भावी प्रबल, आत्माको संतोष इस ही बात पर दिया जाता है कि २८ वरसके बाद हमारे उपकारी महात्माके योग्य पट धर को हमने अपना शिरताज देखा । इस दासकी प्रार्थना यही है कि आप सिंह जैसे प्रबल, चंद्रमाके जैसे उज्जवल, सूर्य जैसे तेज प्रताप वाले होकर, बलीके जैसे शूरवीर होकर जैन जैसे दयालु होकर स्वपरोपकारार्थ आरोग्यतापूर्वक इस पृथिवी पर विचर कर सब जीवोंके तारनेवाले बनें, कलम जियादा कहना नहीं करती इस वास्ते आचार्य श्री १०८ श्रीयुत विजयवल्लभ मूरि महाराजकी जय बोलते हुवे इस अरजीको समाप्त करता हूँ।
फकतदास गुलाबचंद ढढा ।
156 | A Harrison Road, Calcutta.
17-12-94. श्री मान्यवर १००८ श्री आचार्य वल्लभविजयजी महाराज १००८ श्री उपाध्याय श्री सोहनविजयजी महाराज मुनि मंडल जोग कलकत्ते से दयालचंद का वंदना । तार श्रीसंघका आया जिसमें आपके आचाय वा उपाध्याय पदपर विभूषित होनेकी खबर थी।
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