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आदर्श जीवन
- अज्ञ लोक एक प्रकार के बालक होते हैं। जैसे कोई रोग अस्त हठी बालक ओषधि पीने से इनकार करता है और उत्तम वैद्य अपने मधुर वचनों द्वारा उसे समझाबुझा कर ओषधि पिला देता है और वह रोग से मुक्त होजाता है, इसी प्रकार साधु महात्माओं का फजे है कि वे पास में आये हुए अबोध से अबोध मनुष्य को भी किसी न किसी प्रकार से सद्बोधामृत पिला कर सुबोध करने का प्रयत्न करें। व्याख्यान देते समय क्रोध बिलकुल नहीं करना। क्रोध से विचार शक्ति नष्ट होजाती है। सरल से सरल प्रश्न का भी उत्तर देते नहीं बनता । क्रोध जैसा भयंकर विष और कोई नहीं। यदुक्तम्
द्रुमोद्भवं हन्ति विषं नहि द्रुमं, नवा भुजंगप्रभवंसुनंगम् । अदः समुत्पत्तिपदं दहत्यहो हंहोल्वण क्रोधहलाहलं पुनः ॥
उपदेश देते समय साधु यदि क्रोध के वशीभूत हो जाय तो वक्ता श्रोता दोनों को ही कर्म का बन्ध होता है। इसलिये साधु पुरुष को प्राणिमात्र से मैत्री रखनी चाहिये और उसकी भाषा बड़ी ही शान्त एवं मधुर हो । शेख सादी एक जगह फरमाते हैं
दिलागर तवाजे कुनी अखतियार
शवद खलक दुनिया तुरा दोस्तदार ।। ___ साधु पुरुषों के द्वारा प्रेम भाव से उपदेश मिलने पर धर्मान्वेषक जिज्ञासु लोग अवश्य धर्म में दृढ़ होते हैं और धर्म के रासिक बनते हैं। वीतरागदेव के प्रपौत्र मुनि महाराज, पाट पर
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