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आदर्श जीवन।
mmmmmmmmmmmine हुई उसी क्षेत्र में श्री संघने आपको गुरु महाराज के पट्ट पर अभिषिक्त किया यह आपके लिये बड़े गौरव की बात है। अब आप की और श्री संघ की इसी में शोभा है कि आप गुरु महाराज के कदमों पर चलते हुए शासन की शोभा में उत्तरोत्तर वृद्धि करें । श्री जी महाराज धर्म चर्चा के समय अपने वचनामृत से धर्माभिलाषियों की भावनाओं को पूर्णतया भरपूर करते हुए कहा करते थे कि,-संसार ताप से अत्यन्त तपे हुए जीवों को वीर परमात्मा की अमृतमयी वाणी सुना कर शान्त करने का सतत प्रयत्न करते रहना यही हमारा सच्चा धर्म धन है । यदुक्तम्
शास्त्रं बोधाय दानाय धनं धर्माय जीवितम् ।
वपुः परोपकाराय धारयन्ति मनीषिणः ॥ १॥ वाद विवाद के समय कई एक कम समझ कटुक रवभाव रखने वाले मनुष्य निष्कपट या सत्य कहने पर भी गर्म हो पड़ते थे; परंतु आप तो सदा शान्त और प्रसन्न वदन ही रहते थे। विपक्षी लोग कितने ही गर्म हों मगर आप तो सदा शान्ति से ही उत्तर दिया करते और अपनी शान्त गम्भीर मुद्रा में विकृति का अणु मात्र भी प्रवेश नहीं होने देते थे। इस पर आप श्री से कभी पूछा गया तो आपने यही उत्तर दिया कि
सुजनो न याति विकृतिं परहितनिरतो विनाशकालेपि । छेदे हि चन्दनतरु सुरभयति मुखं कुठारस्य ॥
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