________________
आदर्श जीवन ।
(११) श्री वीर संः २४५१
विः १९८१ श्री आत्म सः २९
मागसर सुदी १० प्रातः स्मरणीय चारित्र चूडामणि यतिपति शासन सुभट कलिकाल कल्पवृक्ष मुनिचक्र चूडामाण शांतदातादि सकल सद्गुण विभूषित परोपकारनिष्ठ श्री श्री श्री १००८ जैनाचार्य श्री विजयवल्लभमरि जी महाराज आदिनी सेवामा लाहोर, ओलपाड ( सूरत ) थी सेवक विनयनी वंदणा नी साथे मालूम थायके आपनी पदवी नो तार सूरत आवेल त्यांथी मने आजरोज खबर मल्या, तेथी लखवानुं के लायक ने लायक मान मले तेमां आनंद थाय ए स्वाभाविक छे. दः सेवक विनयनी वंदना स्वीकारशोजी. दोशी जमनादास भगवानजीनी वंदना १००८ वार आपनी पवित्र सेवामा स्वीकारशोजी. जत लखवान के आपने आचार्य पदवी मळी तेथी अमे बहु खुशी थया छीये।
श्रीमद् विजयधर्मसूरिगुरुभ्यो नमः ।
मीती मार्गशीर्ष वदी १४ धर्म संः ३. शांत्यादि अनेक गुणगणालंकृत शासनोन्नतिकारक विद्वद्वर्य श्रीमान् विजयवल्लभमूरिजी महाराज आदि ठाणा सर्वनी पवित्र सेवा मां मु० लाहोर, सविनय १००८ वार वंदना साथे विनंती के आपनो पत्र मल्यो हतो......................"विशेष पहेलो पत्र लख्या बाद "जैनपत्र" थी आप श्रीने आचार्य
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org