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आदर्श जीवन।
___ वहाँसे आगेके गाँवमें पधारे । यहाँका ग्रामपति एक विद्वान था गोचरी फिरते हुए पं. श्रीललितविजयजी उनके घर चले गये । उनके वहाँ परमान्न ( क्षीर) का भोजन तैयार था मगर-अभी तक चूल्हेपर था वह देने लगे मुनिजीने लेनेसे इनकार किया और अपने आचारका दिग्दर्शन कराया। पंन्यासजीके कथनमे संस्कृत भाषाका बाहुल्य सुनकर ग्रामपति खुश हुए और पंन्यासजीसे गुरु महाराजकी प्रशंसा सुनकर वह आपके पास आये । वह संस्कृतमें ही बहुत देरतक आपके साथ वार्तालाप करते रहे और आपकी विद्वत्तासे प्रसन्न होकर अपने स्थानपर चले गये ।
इस गाममें एक भव्य उपाश्रय था मगर श्रावकोंकी कमज़ोरीसे राज्यकर्मचारी लोगोंने उसमें अपना दफ़तर रखकर अपना कुलफ लगा रखा था। ठाकुर साहिबने सोचा ऐसे ऐसे विद्वान साधु यहां आते हैं और स्थानाभावसे ठहर नहीं सकते । यह सोचकर उन्होंने हमारे चरित्रनायकके सामने ही श्रावकोंको कहा आजतक मुझे मालूम नहीं था कि यह मकान ऐसे ऐसे प्रखर विद्वानोंके ठहरनेके काम आता है । अब तुम रिपोर्ट करो मैं यथाशक्ति प्रयत्न करके मकानका कब्जा तुमको दिला दूँगा। ठाकुर साहिबका पंन्यास ललितविजयजीसे बड़ा स्नेह हो गया। क्यों कि उन्हींके द्वारा उनको गुरुदर्शनोंका और एक अदृष्ट पूर्व महर्षिसे धर्मचर्चा करनेका अव-.. सर मिला था।
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