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आवर्श जीवन ।
- कोटकपूरसे चाँदा पधारे । रास्तेमें चलते हुए दो साधुओंको ज्वर हो आया । अतः उन दोनोंकी उपधियाँ और झोलियाँ आपने ले लीं। इसीका नाम समयज्ञता है । कुछ आगे पंन्यासजी महाराज श्रीललितविजयजी जा रहे थे उनको खबर पड़ने पर वे ठहर गये और आपके मिलनेपर आपसे वे चीजें फिर उन्होंने ले लीं।
चाँदेसे विहारकर आप तलवंडी पधारे । वहाँ एक पब्लिक व्याख्यान हुआ । जीरेके लोग वंदना करने और आपको वहाँ पधारनेकी विनती करने आये थे।
तलवंडीसे विहार कर आप जीरे पधारे । वहाँ दो पब्लिक व्याख्यान हुए । व्याख्यानमें बड़े बड़े ऑफिसर भी आये थे । आपसमें दो आदमियोंके मुकदमा चलता था उसे भी आपने मिटा दिया।
जीरेसे विहार कर आप सुलतानपुर, कपूरथला, कर्तारपुर, अलालपुर, आदि स्थानोंमें होते हुए खुर्दपुर पधारे । गुजराँवालेसे विहारकर स्वामी श्रीसुमतिविजयजी महाराज
और पंन्यासजी श्रीसोहनविजयजी महाराज भी आपसे यहाँ आ मिले।
वहाँसे विहार कर आप नसराला गाँवमें पधारे सर्व साधु भी इकट्ठे हो गये यानी हुशियारपुरसे विबुधविजयजी और विचक्षणविजयजी भी यहाँ आमिले।
फाल्गन सुदी ५ के दिन आप सर्व साधुओंसहित
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