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आदर्श जीवन ।
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इस समय फिरसे कौल करार होनेवाले हैं, इसके लिए खास बुद्धिमान, विचारशील नेताओंको मिल कर योजना तैयार करनी चाहिए। मेरी बुद्धिके अनुसार इस काममें आपकी खास आवश्यकता है । आपको विशेष आग्रहके साथ लिखने की कोई आवश्यकता नहीं है । आपके हृदयमें तीर्थका हित ओतप्रोत भरा हैं, इस लिए कृपा कर मार्ग में आव श्यकतानुसार ही विश्राम ले, यथासाध्य शीघ्र ही इधर पधारें । मेरी यही नम्र प्राथना है । × × × ×
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लाहोर सरकारकी तरफसे पुरातत्त्वकी खोज करनेवाले श्रीयुत हीरानंदजी शास्त्रीने, फर्नहिल नीलगिरिसे लिखा था: - “ भागमलजीने उवाईसूत्रकी प्रति और त्रिषष्ठि शलाका पुरुष चरित्र पर्व ८, ९ और १० वाँ आपकी आज्ञानुसार भेज दिये हैं । बड़ी ही कृपा है । धन्यवाद करता हूँ । उवाई सूत्र पढ़कर भेज दूँगा ।
मेरा विचार है कुछ समय आपके पास व्यतीत करूँ । जब संभव होगा लिखूँगा । मैं चाहता हूँ जैनधर्मके ग्रंथ पढ़ कर उनको छापूँ और टीका टिप्पणी उनपर लिखूं, जैसा याकोबी साहब योरपमें करते हैं । देखें कब विचार पूरे होते हैं। यदि इतना दूर न होता तो कुछ न कुछ अबतक लिख देता । कभी कभी कृपापत्र भेजा कीजिए । "
गवर्नमेंट कॉलेज लाहोरके प्रॉफेसर बाबू बनारसीदासजी जैन एम. ए. ( ऑफ लंदन ) सन् १९२४ में लंदन गये हैं ।
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