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आदर्श जीवन।
अपनेमें होनेवाली शिक्षाकी कमी को अब वह पूर्णरूपसे अनुभव करने लगा है। यदि महाराजश्री अपने पवित्र चरणकमलोंसे इस भूमिको कुछ समय तक पवित्र करते रहे तो वह दिन बहुत नजदीक है जब कि वह ( पंजाबका जैनसमाज) अपनी सामाजिक और धार्मिक शिक्षामें रही हुई अत्यन्त अपूर्णताको पूर्ण करनेमें पूर्णतया समर्थ हो जायगा । एवं लाहौर जैसे विशाल क्षेत्रमें जैन समाजकी अत्यल्प संख्याके होने पर भी इतने बड़े उत्साहपूर्ण समारोहका होना और उसमें पूर्णतया सफलता प्राप्त करना यह सब कुछ उक्त मुनि राज ( श्रीवल्लभविजयजी महाराज ) के आदर्शजीवन का प्रभाव, प्रशस्तोपदेश और पूर्ण कृपाका ही विशिष्ट फल है ! यह कथन निस्संदेह, अत्युकि शून्य और तथ्य पूर्ण है।
जीर्णोद्धार । यहाँ पर भगवान सुविधिनाथ स्वामी का एक प्राचीन जैन मंदिर था। उसकी अत्यन्त जीर्ण दश को देखकर महाराजश्रीके सदुपदेशसे यहाँ-लाहौर के श्रीसंघके मनमें उसके पुनरुद्धारकी शुभ भावना पैदा हुई । यद्यपि यहाँ पर अपने जैन समुदायकी संख्या बहुत कम और उसमें भी धनाढ्य कोइ नहीं प्रायः सभी मध्यस्थितिके लोग हैं तथापि इस धार्मिक काममें लोगोंने इतना उत्साह दिखलाया कि थोड़े ही दिनोंमें देवविमानके समान एक विशाल शिखरबद्ध मंदिर तैयार कर दिया । स्थानकी संकीर्णता होने पर भी उसकी बना
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