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आदर्श जीवन ।
समर्थन किया । इसके अनन्तर पंन्यास श्री सोहनविजय जी को मुखातिब करके, महाराज श्री ने फरमायाः “ तुम को इस वक्त श्री संघ की तरफ से जिस पद पर प्रतिष्ठित किया जाता है उस की गुरुता का तुम को अब पूरा ख्याल रखना होगा । तुम्हारे स्वभाव में कुछ उतावलापन है इस उतावले पन की जगह अब तुम्हें अपने हृदय में गम्भीरता को स्थान देना चाहिए । जो कुछ भी करना समझ सोच कर करना जो कि परिणाम में शुभ फल का देने वाला हो । तथा आज से लेकर अपने को एक बात का खास ख्याल रखना होगा । कोई भी नया काम करना हो तो अपने सिर पर जो बड़े हैं- ( प्रवर्तक जी महाराज, श्री हंसविजय जी महाराज, पंन्यास श्री सम्पद्विजय जी महाराज और स्वामी श्री सुमति विजय जी महाराज आदि मुनिराज ) उनकी सम्मति के बगैर नहीं करना तथा अपने से छोटे साधुओं की भी सलाह लेना जरूरी है । तात्पर्य यह कि जो कुछ भी करना सम्मति से करना । इसी में श्रेय है ! यह बात खास लक्ष्य में रखनी चाहिए कि कोई भी पुरुष सेवक हुए बिना सेव्य नहीं
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बन सकता ।
आचार्य पद की क्रिया - इसके बाद शास्त्रोक्त विधि के अनुसार आचार्य पद की जो आवश्यक क्रिया थी वह की गई और ठीक साढ़े सात बजे महाराज श्री को आचार्य पदवी की और साथ ही पंन्यास श्री सोहनविजय जी पर उपाध्याय
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