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आदर्श जीवन ।
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ये बड़े ही सज्जन, मिलनसार और धर्मात्मा सज्जन हैं। विद्वान होते हुए भी उनके हृदयमें अभिमान नहीं है । इन पंक्तियोंके लेखकके साथ वे बड़े ही प्रेमके साथ मिले थे। बंबईके जैन नेताओंने उनका यहाँ अच्छा सत्कार किया था। जिस दिन वे जहाजमें बैठे उस दिन कई नेता उन्हें पहुँचाने गये थे और श्रीफल भेट में देकर उनकी यात्रा सफल होनेके लिए शुभ भावना की थी। उन्होंने पं० महाराज श्रीललितविजयजीको लिखा है___ " xxxx गुरुमहाराजकी ( वल्लभ विजयजी महाराजकी) कृपासे अबतक अभक्ष्यको हाथ नहीं लगाया और आशा है नहीं लगाऊँगा ।xxxx" - आपने चरित्रपूजा रची वह 'वर्द्धमान ज्ञानमंदिर । उदयपुरके भेट भेजी गई थी। उसके संचालक यति श्रीअनूपचंदजीने लिखा है-" xxxx चरित्रपूजाकी पुस्तक विवेचनसहित मिली । पढ़ कर बहुत आनंद हुआ। यहाँपर अठाई महोत्सव शुरू हुआ उसमें यह पूजा बड़े आनंदके साथ पढ़ाई गई । ( खरतर गच्छीय ) कृपाचंद्रजी महाराज व श्रोतागण पूजा सुनके बहुत प्रसन्न हुए। xxxx" ___ लाहोरके चौमासेका संक्षिप्त वर्णन, और आपको आचार्यपद पर स्थापित करनेका एवं आपके द्वारा लाहोरमें की गई प्रतिष्ठाका सविस्तर वर्णन लाहोरकी आत्मानंद जैनसभाने प्रकाशित कराया है उसको हम यहाँ उद्धृत करते हैं।
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