________________
आदर्श जीवन ।
नहीं तो फिर किसी भाषामें हों जरूर तलाश करके रख छोड़ें। हुजूरकी दया से बंदेको इस वक्त किसी किताब या ग्रंथकी जरूरत नहीं । लेकिन धर्मके फूल सूँघनेका निहायत शौक है । बाकी सबकी खिदमत में सलाम कुबूल हो । ज्यादा आदाब फकत ।
95
खादिमुल्फ़कीर मुन्शी शरेहुसेन सामानवी । होशियारपुरका चौमासा समाप्त होनेपर आप काँगड़ेकी यात्रा के लिये पधारे । काँगड़ेका नाम पहले नगरकोट था । प्राचीनकालमें वह ' त्रिगर्त्त' के नाम से विख्यात था । उस समय अनेक जैन और जिनमंदिर भी वहाँ थे । इस समय वहाँ एक स्थानपर भगवान श्री आदिनाथकी एक भव्य मूर्ति है । जो किलेमें होनेके कारण गवन्मेंटके अखतियार 1 और कबजे में है । जैनसमाजका कर्त्तव्य है कि, वह प्रयत्न करके उस मूर्तिको अपने अधिकारमें ले और सेवापूजाका
प्रबंध करे । *
४२५
आपके साथ होशियारपुरके कई श्रावक श्राविका यात्रार्थ गये थे । एक छोटासा संघ हो गया था ।
काँगड़ेकी यात्राकर आप वापिस होशियारपुर पधारे । और वहाँसे अन्यत्र विहार किया । काँगड़ा तीर्थका वर्णन
★ सुना गया है कि हमारे चरित्रनायकने इसके लिए प्रयत्न जारी किया था मगर कामयाब नहीं हुए । अब दुबारा फिर भी कुछ प्रयत्न करना चाहते हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org