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आदर्श जीवन।
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विज्ञप्तित्रिवेणी नामा पुस्तक-जो भावनगर (काठियावाड) की श्रीजैनआत्मानन्दसभाने छपवाया है पढ़नेसे बखूबी. मालूम हो जाता है।
(सं० १९८१-८२) होशियारपुरसे विहार कर मियानी, उरमड आदि स्थानोंके जीवोंको उपदेशामृत पिलाते हुए आप 'जंडियाला गुरु" पधारे । वहाँके लोग बाजेगाजेके साथ आपका सामैया करनेके लिये सामने आये, मगर आपने विचार कर लिया था कि, जबतक मनोरथ पूर्ण न होगा तब तक कहीं भी जुलूसके साथ नगरप्रवेश न करेंगे । तदनुसार आपने संघसे कहा:-" उरमडमीयानीमें भी विनाही वाजेके मैं गया हूँ यहाँभी उसी तरह जाऊँगा।" ___ संघमें उदासीनता छा गई । मगर क्या करता लाचार था । बाजे लौटा दिये गये । बाजोंके धूमधड़ाके बिनाका शान्त जुलूस निकला । लोग इस शान्त जुलूससे विशेष प्रभावान्वित और अन्तद्रष्टा बने ।
आपका विचार शीघ्र ही गुजराँवाला पधार कर स्वर्गीय गुरुदेवकी समाधीकी चरणवंदना करनेका था; परन्तु लाहोर आदि रास्तके स्थानोंमें प्लेग हो जानेके कारण श्रावकोंके आग्रहसे आपको वहीं ठहरना पड़ा।
जंडियालेमें कई दिनोंसे आपसमें कलह चल रहा था । आपके प्रयाससे वह मिट गया ।
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