SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४०२ आवर्श जीवन । - कोटकपूरसे चाँदा पधारे । रास्तेमें चलते हुए दो साधुओंको ज्वर हो आया । अतः उन दोनोंकी उपधियाँ और झोलियाँ आपने ले लीं। इसीका नाम समयज्ञता है । कुछ आगे पंन्यासजी महाराज श्रीललितविजयजी जा रहे थे उनको खबर पड़ने पर वे ठहर गये और आपके मिलनेपर आपसे वे चीजें फिर उन्होंने ले लीं। चाँदेसे विहारकर आप तलवंडी पधारे । वहाँ एक पब्लिक व्याख्यान हुआ । जीरेके लोग वंदना करने और आपको वहाँ पधारनेकी विनती करने आये थे। तलवंडीसे विहार कर आप जीरे पधारे । वहाँ दो पब्लिक व्याख्यान हुए । व्याख्यानमें बड़े बड़े ऑफिसर भी आये थे । आपसमें दो आदमियोंके मुकदमा चलता था उसे भी आपने मिटा दिया। जीरेसे विहार कर आप सुलतानपुर, कपूरथला, कर्तारपुर, अलालपुर, आदि स्थानोंमें होते हुए खुर्दपुर पधारे । गुजराँवालेसे विहारकर स्वामी श्रीसुमतिविजयजी महाराज और पंन्यासजी श्रीसोहनविजयजी महाराज भी आपसे यहाँ आ मिले। वहाँसे विहार कर आप नसराला गाँवमें पधारे सर्व साधु भी इकट्ठे हो गये यानी हुशियारपुरसे विबुधविजयजी और विचक्षणविजयजी भी यहाँ आमिले। फाल्गन सुदी ५ के दिन आप सर्व साधुओंसहित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy