________________
आदर्श जीवन।
vvvvvv
लोंके दस बरसतक मदद देनेके वचन थे उनका समय भी अब अनकरीब ही पूरा होनेवाला है । इस लिए इस बरसकी मुद्दत समाप्त हो इसके पहले ही यदि प्रेरककी तरह उपदेश द्वारा समाजकी सेवा हो सके तो जैन समाजको उन्नति की पायरी पर पहुँचानेवाले महावीर जैनविद्यालयकी नींव मजबूत हो जाय । आदि।
मेरी भावनाको मान दे कर पंन्यास ललितविजयजीने अर्ज की कि,-" यदि आपकी ऐसी ही इच्छा हो और मुझे वहाँ जाने के योग्य समझते हों तो प्रसन्नतापूर्वक मुझे जानेकी आज्ञा दी जिए, मैं हर तरहसे हरेक तकलीफ को बर्दाश्त कर वहाँ शीघ्र ही पहुँचूँगा और यथाशक्ति समाजकी सेवा कर आपकी इच्छा को पूर्ण करूँगा।"
श्रीमहावीर जैन विद्यालय इन्हींकी उपस्थितिमें स्थापित हुआ था, इसलिए जैसा सद्भाव उसके प्रति मेरा है वैसाही, मेरा विश्वास है कि, उनका भी है। बंबई के श्रीसंघसे भी वे भली भाँति परिचित हैं, इसलिए वे समाजसेवाके कार्य में अवश्य प्रयत्न करेंगे और समाजका ध्यान उस तरफ भली प्रकार आकर्षित कर सकेंगे। इसी आशयसे मैंने पंन्यास ललितविजयजीको आज्ञा दी कि ऐसे समाजसेवाके कामको अवश्यमेव करना चाहिए; मेरी मान्यता है कि, तुम कर सकते हो, इस लिए बंबईके श्रीसंघकी इच्छा को मान दे, यथासाध्य प्रयत्न कर, यह चौमासा तुम्हें वहीं जाकर करना चाहिए।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org