________________
आदर्श जीवन।
विचरना रहता है । आप जैसे सत्गुरुओंके दर्शन हम कर्मचारी लोगोंके लिए अति दुर्लभ हैं। मगर अब आशा है कि, आप नजदीक विराजमान हैं और पंजाबकी तरफ पधारनकी सुनी है इस लिए विनयपूर्वक प्रार्थना है कि, अबका चौमासा बीकानेरमें कृपा करके अवश्यमेव कीजिएगा, ताके हम लोगोंका भी जन्म सफल हो। आप सद्गुरुओंका भी फर्ज है कि इस मरुधर देशमें कठिन परिश्रम उठाके पधारें और अज्ञान जीवोंका उद्धार कर जैन शासनकी उन्नति करें । और महाराज श्री श्री श्री देवश्रीजी आदि ठाणा आठसे यहाँ विराजमान हैं । धर्मका उद्धार अच्छा हो रहा है। इनको भी यहाँ रहनेकी इजाजत फर्मावें । यहाँ इनके विराजनेसे बहुत उपकार होगा। आपके पधारनेकी सूचना जल्दी फ़ौवें ताके हमारा मन प्रफुल्लित हो।"
यहीं सं० १९७५ के कार्तिक सुदी ९ का लिखा हुआ राजपूताना जैन श्वेतांबर प्रान्तिक कॉन्फरेंसके मंत्रिका, एक छपा हुआ पत्र आपके पास आया था। उसको हम यहाँ देते हैं । इस तरहके पत्र, उक्त सभाके फलौधीके एक प्रस्तावके आधारपर, समस्त मुनिराजोंके पास भेजे गये थे। अन्यान्य मुनिराजोंने राजपूतानाके जैनोंकी पुकार सुनकर कुछ किया या नहीं सो हम कुछ नहीं जानते मगर हमारे चरित्रनायकने जो कुछ किया है उसे हम आगे देंगे । पत्रमें यह लिखा था:
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org