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आदर्श जीवन ।
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लिए द्रव्य क्षेत्र काल भाव देखकर जिससे रस चलित का दोष न लगे वैसे उपयोग रखना चाहिये।
कलमी और कच्चीके लिए भी प्रवृत्ति दोष न हो जावे इस लिये विवेक रखना ही योग्य है । तात्पर्य इस त्यागमें केरीसे मतलब नहीं है, किन्तु रसचलित हो जानेसे-बिगड़ जानेसे जीवोत्पत्ति हो जानेसे अभक्ष्यसे मतलब है । गुजरात देशमें भी आःतक खानेका जो प्रचार है सो बहुत करके आर्द्रा बाद केरीमें बिगाड़ होता है इस लिए परंतु किसी समय हवा पानीके कारण आर्द्रा पहले भी बिगाड़ हो जाता है, तब विवेकी लोग आद्रासे पहले ही त्याग कर लेते हैं । सचित्तका त्यागी मिश्र दोष न लगे इस कारण रस निकाले बाद दोघड़ी होनेसे वापर सकता है। दो घड़ीसे पहले नहीं । जैसे साधु साध्वी दो घड़ी होनेके बाद गोचरीमें लेते हैं। इसी तरह एकासणेमें भी समझ लेना । हाँ जिसने लीलौतरी ( सबजी ) का त्यागकिया हो उसको रस भी वापरना योग्य नहीं है । इसी तरह पके हुए केलेके लिए भी समझ लेना कि, जिसको तिथिके रोज सबजीका त्याग हो वो केला भी नहीं खा सकता है । जिसने नियम करते हुए खुला रखा हो उसका अखतियार है । गुजरातमें इसी वास्ते कितनेक लीलोतरीका नियम करते हुए पाकी केरी पाके केले की छूट रखते हैं । साधु साध्वियोंके योगोदहनके दिनोंमें और श्रावक श्राविकाओंके उपधानके दिनोंमें अचित्त होने
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