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आदर्श जीवन।
समय हाकिम थे । यद्यपि वे तेरहपंथी थे तथापि आप पर बड़ी भक्ति रखते थे । बालीमें एक मुसलमान डॉक्टर भी थे। उनका वहीं नहीं आसपासके लोगोंमें भी बड़ा मान था। वे भी हमारे चरित्रनायक पर बहुत भक्ति रखते थे। उन दोनोंने एवं इन्स्पेक्टर गजराजजी मुहताने तथा सूरजमलजी दारोगा आदि प्रतिष्ठित श्रावकोंने आपसे बड़ा आग्रह किया कि, आप बाली पधारें, किन्तु आपने बाली जानेसे इन्कार कर दिया । आप वहींसे थोड़ी दूर फालनेका स्टेशन है । वहाँ खुडालेके श्रीसंघकी धर्मशालामें पधार गये । वहाँ एक श्रीजिनमंदिर भी है । खुडालेका श्रीसंघ भी आपके निकट ही तंबू , झोंपडियाँ लगाके आ रहा था । यहाँ आपने चौदहराजलोकपूजाकी रचना की थी।
प्लेगके शान्त होजानेपर आप श्रीसंघ सहित पुनः खुडाला गांवमें पधार गये और चतुर्मासकी समाप्ति गांवमें ही की।
उसी चौमासेमें आपके शिष्यरत्न पं. श्रीललित विजयजी महाराजके हाथसे सादड़ी में भी 'श्रीआत्मानंद जैन पाठशाला सादड़ी' की स्थापना हुई । अब उसके लिए मकान भी तैयार हो गया है । इस मकानमें सेठ मूलचंदजी सादडी निवासीने दस हजार रुपये दिये हैं। बाकी खर्चाश्रीसंघ सादडीने दिया है। उस पाठशालाकी उद्घाटनक्रिया आपके लिखनेसे श्रीयुत गुलाबचंद्रजी ढड्डा एम. ए.ने सं० १९८२ के ज्येष्ठ सुदी १२ के दिन की थी। मकानपर निम्न प्रकारका बोर्ड लगाया गया है
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