________________
३८४
आदर्श जीवन। morrorani __जो गुण या जो पद आपको प्राप्त नहीं है वह गुण या वह पद यदि कोई आपके नामके पहले लगाता है तो आप उसे बिलकुल नापसंद करते हैं । भक्तोंके लिए आप सभी कुछ हैं; भक्त आपको सभी गुणसंपन्न और सभी पदोंसे विभूषित ही मानते हैं और लिखते हैं परन्तु आपने कई बार उपदेशमें इसका प्रतिकार किया और एक विज्ञप्ति भी इसी चौमासेमें आपने प्रकाशित कराई उसका हम यहाँ आत्मानंदप्रकाशसे उद्धृत करते हैं।
सूचना । ___“ सर्व सज्जनोंसे विज्ञप्ति है । मुझे कोई आचार्य, कोई जैनाचार्य, कोई धर्माचार्य, कोई उपाध्याय, कोई पंन्यास, कोई शास्त्रविशारद, कोई विद्याविशारद, कोई विद्यावारिधि, कोई मुनिरत्न, कोई प्रसिद्धवक्ता, कोई प्रखरविद्वान, कोई भू भास्कर, इत्यादि मनःकल्पित अपनी अपनी इच्छानुसार उपाधि-टाइटल-पदवीयाँ लिखकर भारी बनाते हैं । यह बिलकुल अन्याय होता है। क्योंकि न मुझ किसीने कोई उपाधि दी है, न मैंने ली है और न मैं किसी उपाधिके लायक ही हूँ। अतः स्वर्गवासी जैनाचार्यश्रीमद्विजयानंद सूरि महाराजकी बखशी हुई 'मुनि' उपाधिके सिवा अन्य कोई उपाधि मेरे नामके साथ कोई भी महाशय न लिखा करें। :
___ हस्ताक्षर मुनि वल्लभविजय । " खुडालेमें, आपका वहाँसे विहार हो जानेके बाद, आपके
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org