________________
आदर्श जीवन ।
-
रनेके बाद वदी ४ को भगवानकी सवारी निकली और पंचमीको शान्ति स्नात्र हुआ।
धूलचंदजी कांकरिया और शाहजी उदयमलजीके आपसमें कई दिनोंसे वैमनस्य था। दो भाई तीस बरससे आपसमें नहीं बोलते थे । वे ढूंढिये थे । इन महाशयोंने आपके उपदेशसे अपना वैमनस्य दूर कर दिया। दो वैष्णवोंने भी आपके उपदेशसे आपसी विरोध छोड़ दिया। __व्यावरमें पंन्यासजी श्रीहर्षमुनिजीके उपदेशसे पाठशालाके लिए सोलह हजार रुपयेका चंदा हुआ था । मगर वह वसूल नहीं हुआ था । आपके उपदेशसे वह वसूल हो गया। इतना ही नहीं वहाँ सात हजारका चंदा और भी हो गया।
धूलचंदजी काँकरियाने अपनी पचीस हजार कीमतकी एक हवेली पाठशालाके लिए दे दी। उन्होंने अपने वी. मा.का कागज जो पाँज हजार का था-भी पाठ शालाके लिए दे दिया । पाठशाला स्थापित हुई। वह अब अच्छी तरहसे चल रही है।
ब्यावरसे आपने फागण वदी ९ को विहार किया। खरवा पहुँचे । खरवाके ठाकुरने आपके दर्शनका लाभ उठाया। खरवाके ठाकुर साहिबको राजपूतोंकी वंशावलीके कारण जैन साहित्यके देखनेका बड़ा शौक है । वहाँ पूजा और सधर्मीवात्सल्य भी हुआ।
वहाँसे विहार करते हुए आप अजमेर पधारे । समारोहके साथ नगरप्रवेश हुआ। ढडोंकी हवेलीमें आपके दो व्याख्यान
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org