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आदर्श जीवन
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wwws साथ जाडण इस इरादेसे गये थे कि आपको दो दिन वहाँ ठहरा कर कुछ उपदेश जाडणके भाइयोंको दिलाया जावे । आपने वहाँ उपदेश देकर प्रथम तो जाडणके भाइयोंमें जो कुसंपथा उसे दूर किया। बादमें श्रीजिनमंदिरका जीर्णोद्धार और पूजाका उपदेश दिया । आपके उपदेशसे मंदिर और धर्मशालाके जीर्णोद्धारके लिए चंदा हुआ, जिसमें पालीके श्रावकोंने भी कुछ मदद दी, बाकी जाडणवालोंने यथाशक्ति उत्साह दिखाया और हँढिये साधुओंका मंदिरमें ठहरना बंद कराया । वहाँ कई स्थानकवासियोंने आपके पास पूजा पाठका नियम लिया और आपका वासक्षेप भी ले लिया । अब वहाँका मंदिर बड़ी अच्छी स्थितिमें है। उस वक्त पालीके भाइयोंने वहाँ पूजा पढ़ाई थी और साधर्मिवात्सल्य भी किया था जिसमें जाडणके बाई भाई भी शामिल थे।
वहाँसे विहार कर एक गाँव में पधारे जो तीन कोस था। उसमें सारे श्रावक तेरह पंथी थे । इस लिए आहार-पानीकी वहाँ कुछ कठिनता पड़ी। वहाँ आप के दो व्याख्यान हुए। एक श्रावकने पूछा:-"
"स्थलिभद्रजी कोशा वेश्याके घरमें चौमासा रह कर ब्रह्मचारी रहे थे यह बात कैसे संभव हो सकती है।"
आपने उत्तर दिया:.." मन एव मनुष्याणां कारणं बन्धमोक्षयोः" उन्होंने अपने मनको साध लिया था अत एव ऐसे योगी
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