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आदर्श जीवन ।
पोते शिष्य पंन्यासजी श्रीउमंगविजयजी महाराज गये थे । उनके उपदेश और उन्हींके हाथोंसे वहाँ एक लाइब्रेरीकी स्थापना हुई थी । उसका नाम रक्खा गया था - ' श्रीआत्मवल्लभ जैनलाइब्रेरी, खुडाला । '
खुडालेसे विहार कर आप वरकाणा पधारे | पंन्यासजी श्रीललितविजयजी महाराज भी मुंडारेसे संघ लेकर वरकाणाजीमें आपसे आ मिले थे ।
पंन्यासजी महाराजने मुंडारेमें दो संस्थाएँ स्थापित कराइ थीं । एकका नाम है, - ' श्रीआत्मानंद जैन पाठशाला मुंडारा ' और दूसरीका नाम है, - ' श्री शान्ति आत्मवल्लभ जैन लाइब्रेरी मुंडारा ।' पहली संस्थाका चंदा हमारे चरित्रनायकके उपदेशसे ही हुआ था और दूसरीका चंदा पंन्यासजी महाराजके उपदेशसे हुआ था ।
वरकासे रानी, चाँचोरी, एन्द्राका गुड़ा होकर खाँड पहुँचे । खाँडमें आपके उपदेशसे पाठशाला खुली । वहाँ पूजा पढ़ाई गई और दो साधर्मीवत्सल हुए ।
खांडसे गुंदोज पधारे । गुंदोज में जब आप सवेरे आहार पानीकरके ओटले (थडे ) पर टहल रहे थे उस समय उस गाँवके जागीरदार कहीं जा रहे थे । आपको देखकर वे घोड़ेसे उतर गये और आपके पास आकर करीब आध घंटे तक ठहरे । वहाँ आपके उपदेशसे एक पाठशाला भी स्थापित हुई । गुंदोजसे आप कुल्ला पधारे । कुल्लेके कई श्रावक आपको
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