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आदर्श जीवन।
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मगर मैं आपसे यह स्पष्ट निवेदन कर देता हूँ कि, यदि आप नहीं पधारेंगे तो संघ भी नहीं निकालूंगा।"
सेठके बोलनेकी भावभंगी और उनकी आकृतिका परिवतेन यह बताते थे कि, वे दुखी हैं और महाराज साहवसे, बच्चेकी तरह रूठने लग रहे हैं । कहावत प्रसिद्ध है:
भक्ताधीन भगवान । आपने गोमराजजीकी बात मान ली। वे प्रसन्न होकर शिव गंज चले गये।
कहावत प्रसिद्ध है ' श्रेयांसि बहु विघ्नानि । श्रेष्ठ कार्योंमें अनेक विघ्न आते हैं । संसारमें उच्च कार्य करनेवालोंके मार्गमें अधिक वाधाएँ आती हैं । इसका कारण यह है कि, तेजोद्वेषी लोग कुचक्र रचा करते हैं। स्वयं उच्च काम नहीं कर सकते हैं, मगर दूसरेको करते देख कर भी उनके हृदयमें आग लग जाती है । वे सोचते हैं लोग इसकी पूजा करेंगे इसके यशोगान गायँगे और हमारी तरफ उँगली उठायँगे । इस लिए उत्तम यही है कि, इनका कार्य किसी तरहस बिगड़ जाय । इसी तत्वने यहाँ भी कार्य किया । किसने किया और क्यों किया ? इस बातका उहापोह करना हम यहाँ अस्थानीय समझते हैं। यदि अस्थानीय न हो तो भी गईको स्मरण करना अनुचित समझ हम उसे छोड़ना ही मुनासिब समझते हैं।
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