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आदर्श जीवन।
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rrrrहैं सुननेमें और देखनेमें बड़ा अंतर होता है । सुननेमें परके विश्वासपर आधार होता है और देखने में प्रत्यक्षमें अपने आपका विश्वास होता है । जिस तरह आपकी गलत फेहमी दूर हो गई इसी तरह आपकी निस्बत मेरी गलत फेहमी भी निकल गई। इसी लिए तो मैं चाहता हूँ और आपसे भी सिफारिश करता हूँ कि जिस तरह भी हो सके एक दफा सर्व साधुओंका सम्मेलन होवे । आमने सामने मिलनेसे आँखोंमें कुछ शरम आ जाती है; अमी टपकने लग जाता है और हृदयकी जहरकी लहर शांत हो जाती है । आप करनेको समर्थ हैं। यदि आप जैसे समर्थ प्रतिष्ठित महात्मा मिलकर शासन सुधार करना चाहें तो कोई बड़ी बात नहीं है ।" उन्होंने जवाब दिया, वल्लभ विजयजी! तुम्हारा कहना सत्य है । परस्पर मिलनेसे बहुत ही फायदा होता है, जिसका प्रत्यक्ष अनुभव हम तुम दोनोंको हो चुका है और मैं भी यह चाहता हूँ कि साधुसम्मेलन अवश्य ही होना चाहिए। परन्तु इसम छोटे बड़ेकी और वन्दनाकी पंचायत आखड़ी होती है । वहाँ सबकी अकल मारी जाती है।" ___ हमारे चरित्रनायकने कहा:-" महाराज ! क्या इतनी भी उदारता त्यागी साधु महात्माओंसे नहीं हो सकती है ? अरे ! कुल दुनियाकी ऋद्धिको लात मारनेवाले, अपने आपको निर्ग्रन्थ-महामुनि-क्षमाश्रमण-यति-साधु-महाराज कहलानेवाले इतनी भी उदारता नहीं कर सकते हैं ? आप मुझे आज्ञा करें यदि वंदना करनेसे ही सम्मेलन होता हो
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