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आदर्श जीवन ।
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तो बड़े तो क्या हरएक मुझसे छोटे साधुको भी मैं वंदना करनेके लिए तैयार हूँ। :: अफ्सोस ! गृहस्थी भी आपसमें जब मिलते हैं तब योग्य शिष्टाचार करते हैं क्या साधुओंमें इतना भी न होनाचाहिए ? एकने उधरको मुख कर लिया दूसरेने उधरको ! मानों दोनोंने एक दूसरेको 'अदिकल्लाणी' मान लिया। आपका और मेरा योग्य शिष्टाचार हुआ इसमें आपका या मेरा क्या बिगाड़ हो गया ? उलटा गृहस्थोपर अच्छा प्रभाव पड़ा । इस लिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँकि, आप अवश्य सम्मेलनके लिये प्रयत्न करें। मेरा आत्मा मुझे साक्षी देता है कि, आप सफलता प्राप्त करेंगे! क्योंकि आपका प्रभाव बहुत अच्छा है। स्वर्गवासी. १००८ श्रीमद्विजयानन्द मूरि ( आत्मारामजी) महाराजजीके समुदायकी तरफसे तो आप निश्चिंत रहें । केवल १००८ श्रीआचार्य महाराज श्रीविजयकमल मूरिजी, १०८ प्रवत्तेकजी महाराज श्रीकान्तिविजयजी
और १०८ श्रीहंसविजयजी महाराज । इन तनिोंकी सलाहकी जरूरत है । इनके कहनेसे बाहिर प्रायः कोई नहीं होगा। अच्छा अब मैं आज्ञा चाहता हूँ, जानेमें देरी होती है। सुखसाता में रहना धर्मस्नेह रखना।" .
उदय पुरसे संघ रवाना होकर वापिस उसी मार्गसे देसूरी आया जिस मार्गसे वह गया था । देसूरसेि नाडुलाई, नाडोल, वरकाणाजीकी यात्रा करता हुआ संघ शिवगंजमें
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