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आदर्श जीवन।
बनवा सका । किंवदन्ती है कि, जब मंदिरकी नींव डाली जानेवाली थी तब घीका दीपक जलानेके लिए एक कटोरीमें थोड़ासा घी आया था। उसमें एक मक्खी गिर गई। मंदिर बनवानेवाले सेठने उस मक्खीको निकाल कर, घी फालतू न चला जाय इस हेतुसे और मक्खीके भी प्राण बच जायँगे इस खयालसे, अपने जूते पर रख लिया। यह देखकर राजोंको ( कारीगरोंको) खयाल हुआ कि, ऐसा मक्खीचूस आदमी क्या मंदिर बनवायगा ? उनमेंसे एक बोला:" सेठजी! नींवमें डालनेके लिए पचास पीपे घीकी जरूरत है । सेठने तत्काल ही घीके पचास पीपे मँगवा दिये । राजोंने वह घी नीवमें डाल दिया।
राणकपुरका दूसरा नाम त्रैलोक्य दीपक भी है । वहाँकी शाला बेमरम्मत पड़ी हुई थी। आपके उपदेशसे संघवी आदि श्रावकोंने उसकी मरम्मत करा दी।
राणकपुरसे संघ देमूरी पहुँचा। देसूरीमें श्रावकोंके आपसमें झगड़ा था। कोर्टमें मुकदमा चलताथा आपने आपसमें फैसला करनेके लिए बहुत समझाया; मगर वे न माने । तब दूसरे दिन आपने साधुओंको कह दिया कि, कोई इस गाँवमें आहार पानी लेने न जाय । संघमे २७ साधु और ६६ साध्वियाँ थीं। इस समाचारसे सारे देसूरीमें हलचल मच गई। लोग मुकदमेबाजोंको घृणाकी दृष्टिसे देखने लगे उन्हें फिटकारने लगे । अनेक श्रावकोंने भी उस दिन अन्नजल नहीं
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