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आदर्श जीवन ।
पर भी लीला शाक मनाई होने से केरीका रस और पाका केला नहीं लिया जाता है ।
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( ३ ) श्रावक यथा शक्ति बारां व्रत ले सकता है । इसका खुलासा प्रातः स्मरणीय स्वर्गवासी गुरु महाराज जैनाचार्य श्रीमद्विजयानंदसूरि ( आत्मारामजी ) महाराजने श्रीतत्व - निर्णयप्रासाद नामा पुस्तकमें ( स्तंभ २८ पृष्ठ ४४६ ) किया है देख लेना ।
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( ४ ) बने वहाँतक मुद्दल भावसे देना उचित है । यदि न बन सके तो थोडा नफा लेकर देनेमें हरकत नहीं समझी जाती है। क्योंकि उसने देवद्रव्यका फायदा ही किया है नुकसान नहीं । जो चीज बजारमें एक रुपैये में मिलती थी उसके बदले में चौदह आने में दी, प्रत्यक्ष उसने दो आनेका बचाव किया, उसको बुरा किया कौन कह सकता है ? खास करके झवेरी लोगोंको यह काम बहुत दफा पड़ता है । श्रीमंदिरजीमें भगवान के मुकुट-कुंडलहार - जडाऊ आंगी वगैरह में हीरा - पन्ना - माणक - मोति आदि झवेरातकी चीजें मुद्दल भावसे- या अमुक थोड़ासा नफा लेकर और आखिर में चोक्खी - उत्तम चीज बाजारके भावसे झवेरी लोग देते हैं और खरीदते भी हैं । और झवेरी लोग प्रायः श्रावक होते हैं, यह बात तो निर्विवाद है । मतलब उसकी भावना मंदिरजीकी चीजके बिगाड़नेकी या नुकसान करनेकी नहीं है । इस लिए हरकत नहीं है; परंतु जो उसके मनमें खोट होगी तो उसने मंदिरको समझा ही नहीं है; उसको तो दोष ही दोष है ।
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