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आदर्श जीवन।
वस्तु होती ही पीछे है वहाँके लिए यह प्रतिबंध नहीं माना जाता है । मूल मुद्दा आर्द्रा होनेपर वर्षा आदिके कारण पाकी केरीमें-पकेहुए आममें जीव पड़ जाते हैं, रस चलित हो जाता है, जिससे अभक्ष्य समझकर पूर्व पुरुषोंने उस देशके लिए यह मर्यादा बाँधी है। इसी तरह और देशोंमें भी उस २ देशकी स्थिति हवापानी-वगैरहका विचारकर अकसर जिस समयमें बिगड़ जाती हो उस समयसे बिलकुल त्याग कर देना योग्य है। यदि कोई संतोष करके उससे पहले ही त्याग कर लेवे तो अच्छी बात है; परंतु यह गुजरातका कायदा सर्व देशपर लागू करना न्याय नहीं कहा जाता और न लोक मंजूर ही करते हैं।
पंजाबका तो हमें अनुभव है, वहाँ तो आ के बादमें भी कितने अरसे बाद ही केरी पकती है। गुजरात देशका अनुभव तो प्रथमसे ही था । मारवाड़ देशका अनुभव इस वर्षमें प्रायः पूर्ण रूपसे हुआ है । आःतक तो कहीं केरी पकी हुई नजर भी नहीं आती थी। आर्द्राके बाद गाड़ेके गाड़े ही आते दिखलाई देते थे । कितनेक लोग आापर नियमके लिए कहने लगे तो कितनेक भाइयोंने जवाब दिया कि, अभी केरी आई तो है ही नहीं, खाई नहीं, मुखको लगाई नहीं और बिगड़ कहाँसे गई ? हमसे तो ऐसा नियम नहीं हो सकता । हाँ जो लोग गुजरातसे केरी मँगाते हैं उनको आर्द्रा होनेपर गुजरातकी केरीका तो अवश्य ही त्याग कर देना योग्य है । और बाकीके
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