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आदर्श जीवन ।
पिंडवाडे में कई बरसोंसे श्रावकोंके आपस में झगड़ा चल रहा था, मंदिरका प्रबंध भी यथोचित नहीं था;मंदिरका धन कई दबाये बैठे थे । आपने सबको समझा कर झगड़ा मिटाया । बरसोंका मनोमालिन्य आपके उपदेशरूपी जलके प्रवाहसे धुल गया । जिन लोगोंने धन दबाया था उन लोगोंने भी अपने भविष्यका विचार कर धन वापिस मंदिरमें दे दिया । वहाँसे चलकर आपने कई अन्यान्य तीर्थोंकी यात्रा करते हुए नाणा बेड़ाके रास्ते हो कर बीजापुर के पास राता महावीरकी अपूर्व यात्रा करनेका निश्चय कर लिया ।
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जिस दिन आप बेड़ासे रखना हुए उसी दिन बेड़ा गाँवकी एक बरात बीजापुरसे बेड़ा आनेवाली थी । उस तरफ लुटेरे, भील, मीणे आदि बहुत हैं । वे गाँवसे आने जानेवालों की खबर रक्खा करते हैं । बरातके रवाना होनेके समाचार भी उन्हें मिले । वे तैयार हो कर उस जगह पहुँचे जहाँ उन्हें लूटनेका मौका मिलता है । बेड़ा और बीजापुर के बीचमें करीब दो मील पर एक नाला है । उसीमें ये लोग यात्रियोंको लूटा करते हैं । लुटेरे पहुँचे । बरात अभी तक वहाँ पहुँची न थी । उन लोगोंको बड़ी खीझ चढ़ रही थी । वे इधर उधर ताकने लग रहे थे | इतनेही में हमारे चरित्रनायक, श्रीउमंगविजयजी, तपस्वी श्रीगुणविजयजी, श्रीविद्याविजयजी, और श्रीविचारविजयजी ऐसे चार साधु, पाड़ी (सीरोही) के लक्ष्मीचंद हंसाजी श्रावक
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