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आदर्श जीवन ।
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बीजापुर पहुँचे । सिपाही भी धीरे धीरे आपके साथ ही चला गया । क्षत्रिय बच्चा था इसी लिए सिरमें छुरीका जख्म लगने और रक्त बहने पर भी, वहाँतक चलनेकी हिम्मत कर सका। अगर कोई दूसरा होता तो जगहसे हिलता तक नहीं।
जिस समय आप बीजापुर पहुँचे घड़ी में करीब बारह बज चुके थे । इस प्रकारके वस्त्रहीन, मात्र चोलपट्टा धारियोंको गाँवमें आते देख लोगोंको आश्चर्य हुआ। जब आप गाँवके निकट रस्ते पर चल रहे थे, तब बंबईकी सेठ चंदाजी खुशालचंदकी पेढीवाले सेठ जवेरचंदजीने दूरसे आपको देखा और पहिचान लिया । आपका बंबईमें चौमासा हुआ तभीसे सेठ आपको पहिचानते थे और आपकी चरणसेवा करनेमें अपना अहो भाग्य समझते थे । आपको ऐसी हालतमें देखकर पहले तो वे दिग्मूढसे हो रहे । उन्हें क्षण भरके लिए संदेह हुआ कि ये हमारे गुरुमहाराज ही हैं या कोई और । मगर दूसरे ही क्षण वे आपके चरणोंमें गिरे और भक्ति गद्गद कण्ठसे बोले:-"गुरु देव ! आपकी यह दशा ?" __आप मुस्कुराये और बोले:-" कर्म सब कुछ कर सकता है। उपाश्रय बताओ । वहीं सब हाल सुनायँगे।
सेठने आपको उपाश्रयमें लेजाकर उतारा । घरोंमेंसे उसी वक्त जाकर वे कपड़ा ले आये । आवश्यकतानुसार आपने और साधुओंने कपड़ा लिया। बादमें साधु आहार पानी ले आये । आहारपानीके बाद श्रावकोंने हाल पूछा। आपने संक्षेपमें सारी घटना सुना दी ।
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