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आदर्श जीवन ।
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कॉन्फरेंसका जल्सा होनेवाला था । वह हुआ उसका वर्णन ऊपर दिया जाचुका है। ___ सादड़ीके चौमासेमें पर्युषण समाप्त होने पर झगड़ियेसे मुनि श्रीज्ञानसुंदरजी महाराजका एक पत्र सादड़ीके श्रावकोंके नाम आया था। उसकी नकल उपयोगी समझ यहाँ दी जाती है। " + + + + + अधिक हर्ष इस बातका है कि, आपके वहाँ पूज्यपाद, व्याख्यानशिरोमणि, पंडितमुकुटमणि, शासनदीपक, ज्ञानप्रचारक, नीतिवर्द्धक, वादिमानमर्दक शान्त्यादि अनेक शुभ गुणगणालडून्त श्री श्री १००८ श्री श्रीजगदल्लभविजयजी महाराज सपरिवार विराजमान हैं सो आपके पूर्व प्रबल पुण्योदयसे मानों मरु देशमें कल्पवृक्षका ही आगमन हुआ है। जिसके फलका आप लोगोंने अच्छे उत्साहके साथ आस्वादन किया है। उन महात्माकी जयध्वनि आज भारत भूमिमें गूंज रही है, उस ध्वनिका नाद भव्यात्मा श्रवण करते हैं और उनका हृदयकमल विकसित हो जाता है। __ " स्वल्प समयके पहले जगत्प्रसिद्ध, जगतोपकारी श्रीमद्विजयानंद मुरीश्वरजी महाराज मरुस्थलादि अनेक देशोंमें अज्ञानतिमिरका नाशकर ज्ञानका बीज बो गये थे । उन्हीं आचार्यके. चरण कमल निवासी महात्मा, उसी ज्ञान वृक्षको पल्लवित करनेके लिए आपके यहाँ पधारे हैं। उन्होंने आपके यहाँ ही नहीं बल्के अन्य भी बहुतसे स्थानोंमें, सूर्यकी माफिक
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