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आदर्श जीवन ।
बढ़ती है, धार्मिक ज्ञान तथा धर्मके तत्वों पर जहाँ जागृत श्रद्धा है ही नहीं, जहाँ पुरुष अपनी आखिरी मंजिल में अर्थात् वृद्धावस्थामें भी एक कम उम्रकी भोली कन्याके साथ शादी करने से बाज़ नहीं रहते हैं । तथा एकके बाद एक इस तरहंसे तीन चार विवाह करते हैं, ऐसी दशामें इन बाल विधवाओंकी बड़ी संख्याके लिये अपने सतीत्व धमका पालन करना दिन प्रति दिन कठिन होता जाता है। पूज्य वर्य !. कमसे कम इस जड़वादके प्रतिरोधके लिये, कुचारित्र पुरुषोंकी संख्या घटानेके लिये, अल्पायुमें युवकों की प्राण रक्षाके लिये प्रसूतिके समय अल्पायु होनेके कारण माताओंके मरनेको अथवा जन्म रोगिणी होकर सर्वदा के लिये दुःखों के पात्र होने से रोकने के लिये आप अहिंसा धर्म का प्रचार कर सकते हैं। यदि पशु पक्षी तक जैन दयाके तथा मुनिगणोंकी हिमायत के पात्र हों तो क्या अभागे मनुष्य और विशेष कर परमात्मा वीरहीके उपासक इस दया या हिमायतके पात्र नहीं । कमसे कम शासनको जीवित रखनेके हेतु मुनिगणको इस ओर ध्यान देना चाहिये । पूज्य वर्य, सन् १९०१ से १९९१ तक अर्थात् केवल १० वर्षकी अवधि में इस प्रान्तमें २ प्रतिशत जैनी कम हो गये हैं और कई रियासतोंमें तो १५ से २० प्रतिशत जैनियोंकी संख्या घट गई है। जहाँ प्रत्येक जैनीको धार्मिक ज्ञान अथवा सांसारिक ज्ञानके लिये शिक्षित होना
चाहिये
उसके
विपरीत
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