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आदर्श जीवन । wwwwwwww आचरण नहीं रहा । कहाँ तक लिखा जावे सब कुछ दिन प्रति दिन भ्रष्ट होता जाता है । आहिंसा व्रत (दया) को तो इस प्रान्तके लोग यहाँ तक भूल गये हैं कि, अपनी छोटी २ कन्याओंको ब्याह कर उन पर अथवा उनके बालक पति पर अल्पायुहीमें इस कराल कालका आक्रमण कराते हैं। या बूढ़ोंके साथ छोटी २ कन्याओंको बाँधकर उन बे समझ कन्याओंके लिये वैधव्यको आमंत्रण देते हैं। दयालु मुनिगण ! यदि आप एक दफा मर्दुमशुमारीकी रिपोर्टको देखें तो आपको ज्ञात होगा कि इस प्रान्तमें इस दयाधर्मी
ओसवाल जातिका क्या हाल हो रहा है ? प्रति एक सौ सोहागिन स्त्रीयोंके साथ पाँच सौ विधवा स्त्रियोंकी औसत आती है । जिनमेंसे कईकी तो उदरपूर्ति तथा लगभग सबहीकी धार्मिक शिक्षाका कोई उचित प्रबन्ध नहीं है। पूज्य वर्य ! यह ऐसी बात नहीं है कि जिस तरफ करुणा सागर मुनिगणोंका ध्यान न आकर्षित हो । विधवाओंकी अधिक संख्या होनेसे केवल जैनियोंकी संख्या ही कम नहीं होती पर आजकलका समय देखते हुवे जातिके चारित्र पतनका भी भय होता है। जहाँ चारों ओर विलास प्रियता, ऐशआराम इत्यादि पश्चिमी सभ्यताका दौर दौरा है, जहाँ जातिमें प्रत्येक हर्षके अवसर पर पतित चारित्र वेश्याका मान है, जहाँ धनके मदमें, शिक्षाके अभाव में, तथा पंचायतियोंकी अशक्तिके कारण कुचरित्र मनुष्योंकी संख्या
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