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आदर्श जीवन । munaruwarranuarraiwww.nindmmm... सजी महाराज श्रीसंपत्तिविजयजी और अपने शिष्य प्रशिष्यादि परिवार सहित कुछ समय तक लूणसावाड़ेके श्रावकों को उपदेशामृत पिलाकर शहरमें ही पांजरापोलके उपाश्रयमें पधारनेकी कृपा की थी, जिससे परस्पर, एक दूसरे उपाश्रयमें, आनाजाना मिलना सुगमतासे हो सकता था। व्याख्यानादि कार्यके सबब हमेशा तो नहीं; किन्तु प्रायः तिथियोंके दिन हमारे चरित्र नायक सपरिवार इन महात्माकी सेवामें हाजिर हो जाते थे। कभी कभी हंसविजयजी महाराज साहिब भी धर्मशालामें पधारकर अपने बाल बच्चोंकी खबर लेलिया करते थे। दोनों महात्माओंके, अर्थात् श्रीहंसयिजयजी महाराजके और हमारे चरित्रनायकके, हृदयोंमें यह आनंद था कि एक ही. शहरमें जन्मे हुए हम दोनों मुनियोंका, एक, ही शहरमें यह पहला और शायद अन्तिम भी चौमासा है । यह चौमासा धन्य है !
प्रवर्तकजी महाराज श्री १०८ श्री कान्तिविजयजी और शान्त मूर्ति मुनिराज १०८ श्रीहंसविजयजी महाराज इन दोनोंका जन्म स्थान भी बड़ोदा है । और ये दोनों महात्मा भी प्रभाविक पुरुष हैं। हमारे चरित्रनायकके हृदयमें इन महात्माआके लिए अत्यंत पूज्य भाव है और इन महात्माओंके हृदयोंमें भी आपके लिए अति स्नेह और आदरके भाव हैं । - प्रवर्तकजी महाराजके साथ आपने सं० १९७४ का चौमासा बंबईमें किया था और हंसविजयजी महाराजके
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